जुस्तजू भाग --- 15
कुछ न कहो, कुछ भी न कहो।क्या कहना है, सबको पता है।।
(फिल्मी गीत)
काश जिन्दगी भी कोई फिल्म होती ! हमें अंत का निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती।
आरूषि की जिन्दगी के खुशियों भरे पल स्वाति नक्षत्र में बरसे पानी की तरह थे। जिनका मोल पपीहे की तरह केवल वह ही जानती थी। अनुपम भी शारीरिक थकान और मानसिक तनाव से मुक्त होने से तुरंत नींद के आगोश में चला गया। कुछ समय स्वप्निल साथ के बिताने के बाद आरूषि उठ गई। सूर्योदय होने को था। 25 दिसंबर का अवकाश था तो उसने अनुपम को सोने देने का निश्चय किया। अब वह अपने कान्हा को धन्यवाद देना चाहती थी। यह गुण उसमें अपनी मां से आया था जो श्रीनाथ जी की भक्त थी। पर वह इसके कारण से अंजान थी।उठने के बाद आरती करते ही मम्मीजी का फ़ोन आ गया।
"प्रणाम मम्मीजी"
"ठीक हो, अनुपम ने तंग तो नहीं किया।"
"......"
"समझ गई। यहां भी दोनों सो रहे हैं। तुम ईशान की चिंता मत करना। एडमिशन लेने के बाद जब भी छुट्टियां मिले। दोनों चले आना उदयपुर। अनुपम से बात करने को कहना। हां एक बात, उसे सुबह नाश्ते में पोहे पसंद है। वो भी गुजराती नमकीन के साथ। कभी कभी खमन भी।"
"बना दूंगी मम्मीजी।"वह मां का इशारा समझ गई थी।
कमरे में जाने पर अनुपम उसे नहीं मिला। वह समझ गई और बाहर जाने के लिए मुड़ी। उसके हल्के गीले बालों से नन्हीं पानी की बूंदे चारों तरफ बिखर गई। उनमें से कुछ अनुपम पर भी जा पड़ी, जो शायद लॉन से एक्सरसाइज करके लौटा था। एक बार अनुपम स्तंभित हो गया। आरूषि के इस रूप को उसने पहली बार देखा था !!
आरूषि उसके बगल से निकल गई। तब उसे होश आया।वह नहाने चला गया। आज उसने लखनऊ जाने का निश्चय किया था।
आरूषि ने नाश्ता उसके लौटने तक तैयार कर लिया था। कुक जब आया उसने उसे बाकी निर्देश दे दिए और पियोन को टेबल पर लगाने को कहा।
अनुपम आज समय से पहले टेबल पर उसका मनपसंद नाश्ता और टी सेट देखकर हैरान था। उसने चम्मच से खाते ही दिल में वाह कहा। यह दूसरी ही आरूषि थी। उसे पहली रात याद आ गई जब आरूषि कुछ नहीं बनाना जानती थी। वह भी नौकर के हाथ का खाना खा खाकर सब स्वाद भूल चुका था।
"नॉट बैड, डॉक्टर साहिबा"मन बोल पड़ा।
"आज ही लखनऊ चलते हैं। ट्रेन टिकिट्स बुक करवा लेता हूं।"वह आरूषि से बोला ही था कि उसकी मां का फ़ोन आ गया।
"प्रणाम मम्मी"
"उसे ट्रेन में ले जाने की जरूरत नहीं। कार में ले जाना।"
"पर मम्मी, सरकारी गाड़ी...।"
"जानती हूं। कार मैंने खरीदी है और ड्राईवर भी है। आता ही होगा।"
तभी उसके पियोन ने उसे आकर बताया।
" 3 दिन की छुट्टियों के लिए अप्लाई कर दो। आरूषि को लखनऊ में कोई परेशानी न हो, यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।"
"हां मम्मी..."
तभी फ़ोन कट गया। वह आरूषि के प्रति अपनी मां के लगाव से परिचित था।
"दी..." सौम्या की आवाज़ आई।
"अरे तुम !!! आज यहां !!! कैसे ? कुछ परेशानी तो नहीं है वहां !! " आरूषि आश्चर्य मिश्रित चिंता में बोली।
"मां के फ़ोन से आपकी मम्मीजी ने भेजा है। " वह भी हैरान थी।
"पर मम्मीजी ऐसा क्यों करेंगी?"
"वे कुछ भी कर सकती हैं। बस आपके लिए।"अब तक चुप अनुपम बोला,"बाहर कार भी खड़ी है। अभी तो बहुत से ऐसे काम होंगे।"
"पर मैं तो पढ़ने जा रही हूं। अगर आपको न मिली होती तो भी जाती न !!!"
"वे तुमसे दूर रहने की कमी पूरी कर रही हैं।"
आरूषि तो जैसे कोई दूसरे संसार में पहुंच गई थी। अब वो समझ पाई थी कि उसकी सास नहीं उसकी मां ही थी वे। आखिर मौसी भी तो लगती थी वे। उसका मन श्रद्धा से भर उठा।
"जानता हूं आपको मां, आप यह सब आरूषि को मानसिक रूप से स्वस्थ करने के लिए उठा रही हैं ताकि कल उसका पास्ट उसे याद आ भी जाए तो कुछ बुरा न हो उसके साथ"अनुपम भी अपनी मां के प्रति श्रद्धा से नत था।
उधर सौम्या को लेकर आरूषि अंदर चली आई थी। दोनों के आपसी बॉन्ड उसकी सास के इस कदम से बेहद मजबूत हो चले थे।
"कभी भी कोई परेशानी हो, सीधे फ़ोन करोगी। तुम्हारी मां का वादा है, तुम अपने पास पाओगी। हर परेशानी छोटी हो या बड़ी, मुझे जरूर बताओगी। चाहे वह तुम्हारे से हल हो या नहीं।"
अपनी सास की आवाज़ अपने फ़ोन पर सुनकर आरूषि खुशी से रो पड़ी।
"मैंने तुम्हे रुलाने के लिए फ़ोन नहीं किया है। जाओ और अपनी इच्छा पूरी करो मन लगाकर।"
"मम्मी कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी आपको। जी हटा सकती हूं न मैं।"आरूषि बड़ी मुश्किल से बोल पाई।
"बिल्कुल, अगर सौम्या वहां हो तो उसे फ़ोन दो।"
आरूषि ने सौम्या की तरफ़ फ़ोन बढ़ा दिया। सौम्या भी आश्चर्य में थी। सास की जो परिभाषा उसने अब तक देखी सुनी थी। उससे ठीक उलट से परिचय हुआ था उसका भी। दिल उसका भी उनके प्रति श्रद्धा से उठा था।
"प्रणाम मम्मी जी...."
"सिर्फ मां बोलिए जो आप अपनी मां को बोलती हैं। आरूषि को दी बोला है न तो हर खुशी और गम में साथ देना। अब उसके साथ जाइए लखनऊ। अनुपम आपकी छुट्टी सहित सारी व्यवस्था देख लेगा।"
"जी मां...। आपका विश्वास हमेशा बनाए रखूंगी।"
फ़ोन रखते ही दोनों सगी बहिनों सी जुट गई जाने की तैयारी में। अनुपम भी अपनी सारी तैयारी कर चुका था। उसने छुट्टी स्वीकृत करवा ली थी और सभी को कठोरता से पाबंद कर दिया था। सीएम साहब सहित अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों से उसकी नजदीकी सब को पता थी अब। तो कोई गलती की संभावना थी ही नहीं।
10 बजे सब लखनऊ के लिए रवाना हो चुके थे। वहां के गेस्ट हाउस में उनकी रुकने की व्यवस्था भी हो चुकी थी और सीएम साहब ने अनुपम को उसके लखनऊ आने का पता चलने पर उसे मिलने का आदेश भिजवा दिया था।
आरूषि सातवें आसमान पर थी। चेहरे और बातों में उसकी खुशी जैसे बह रही थी। सारे रास्ते अपनी आदत के विरुद्ध वह और सौम्या बातें करती रही। शाम लखनऊ पहुंचते ही अनुपम सीएम हाऊस चला गया। आरूषि और सौम्या भी घूमने निकल पड़ी।
अगले दिन आरूषि की सारी फॉर्मेलिटिज पूरी हो गई। सीएम हाऊस के फ़ोन और अनुपम के पद की जानकारी ने उनके काम में बिजली सी फुर्ती ला दी थी। पर आरूषि परेशान थी।
"आप कृपया इनके साथ अन्य डॉक्टर्स की तरह ही काम लेंगे। यह बात और किसी को कभी पता नहीं चले, यह निवेदन है आपसे।" अनुपम ने वहां के प्रिंसिपल से विनम्रता से कहा।
सारी व्यवस्था होने के बाद तीनों के पास एक दिन और था। आरूषि उनके साथ से बेहद कंफर्टेबल हो गई थी। अनुपम और उसके बीच सारी दूरियां खत्म हो चुकी थी।
तीसरे दिन सुबह ही अनुपम और सौम्या निकल गए थे। सौम्या लखनऊ अपने माता पिता से मिल आई थी। इस तरह उनके साथ समय बिताकर वो भी बेहद खुश थी। आरूषि के लिए उसने अपने माता पिता से पूरा ध्यान रखने का वादा ले लिया था।
आरूषि बेहद लगन और मेहनत से पढ़ाई में जुट गई। उसके सौम्य स्वभाव और ड्यूटी के लिए हर समय तैयार रहने के स्वभाव ने वहां के प्रोफेसर्स और सर्जन्स को प्रभावित किया था। नतीजे में उसे पहले वर्ष से ही सर्जरी में टीम्स में जगह मिलने लगी। साल के अंत में रिजल्ट में भी वह फर्स्ट आई थी। अब उसे वहां सब अपनें परिवार के जैसा रखते थे। प्रिंसिपल को अनुपम ने फ़ोन पर उसकी दुर्घटना में हुई परेशानी के बारे में बता दिया था तो उन्होंने बिना उसके पता लगे उसका ईलाज भी शुरू करवा दिया था। आरूषि हर दिन मम्मी को फ़ोन करना नहीं भूलती थी। सौम्या के माता पिता के साथ ने उसकी परिवार की कमी पूरी कर दी थी।
अनुपम को अगले साल अलीगढ़ में भेजा गया। वहां माहौल ख़राब था तब। अनुपम की योग्यता और काम के जज्बे से सचिवालय और सीएमओ में सब प्रभावित थे। अनुपम ने भी उसे दी गई ज़िम्मेदारी बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से निभाई। न केवल उसने लोगों की भ्रांतियां दूर की बल्कि प्रशासन के प्रति विश्वास भी कायम किया। एएमयू में चल रहे तनावपूर्ण माहौल को भी सामान्य करने में सफ़ल रहा वह।
अब उसे नोएडा में पोस्ट किया गया। जमीनों की धांधली के सबसे ज्यादा आंकड़े और सरकार की बदनामी का केंद्र था वहां। वही दिल्ली से जुड़ाव के कारण केंद्र सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण जिला था। केंद्र में प्रतिपक्षी दल की सरकार थी तो हरेक हलचल पर दोनों सरकारों की नज़र रहती थी। पर अनुपम !! वहां भी सफलता के झंडे गाड़ दिए। कंप्यूटराइजेशन ,ओपन पोर्टल और हर काम को निश्चित दिवसों में होने की व्यवस्था ने प्रतिपक्षी दल में भी उसके हितचिंतक बना दिए। केंद्र सरकार की गुड बुक्स में वह आ गया था और सेंट्रल सेक्रेटियेट के अफसरों में भी बेहद लोकप्रिय हो गया था।
उधर आरूषि परिवार के सपोर्ट के कारण दूसरे वर्ष में ही एसजी पीजीआई के वरिष्ठ सरजंस को असिस्ट करने लगी थी। उसकी सफलता का हंड्रेड परसेंट रिकॉर्ड था तो सभी उसे अपनी टीम में रखने को उत्सुक रहते थे। फिर से उसने फर्स्ट रैंक प्राप्त की थी।
आज की सुबह बेहद अलग थी। आरूषि फिर से रात बहुत लेट गंभीर सर्जरी करके वहीं डॉक्टर्स रूम में आराम कर रही थी कि पीजीआई में समाचार पहुंचा। पुलिस और ड्रग पैडलर्स की जबरदस्त मुठभेड़ में गोलियों से घायल कई लोग लाए जा रहे थे वहां !!
आरूषि को डीन ने तुरंत बुलाया,"डॉक्टर आरूषि, आज आपकी सारी स्किल्स दिखाने का अवसर है। हमारे 2 वरिष्ठ प्रोफेसर्स अपनी टीमों के साथ बाहर हैं तो सर्जरी टीम्स में अनुभवी सर्जन्स बेहद कम है और घायल बहुत आ रहे हैं। आज आप ख़ुद सर्जरी करेंगी और कुछ बेहद गंभीर केसों में मुझे एसिस्ट करेंगी। याद रहे हम अंतिम सांस तक भी सबको बचाने का प्रयास करेगें।"
तभी घायलों को लेकर एम्बुलैंसेज आने लगी। आरूषि अपनी सारी क्षमताओं से जुट गई।
अगले दिन सुबह 4 बजे तक ऑपरेशंस चलते रहे।17 लोगों में से केवल 2 लोगों की जान गई थी। और आरूषि ने जिनकी भी सर्जरी की या एसिस्ट किया उनमें एक भी कैजुअल्टी नहीं थी। डीन सर सहित सभी सरजन्स बेहद थके थे और उनमें से कुछ अपनी स्वास्थ्य परेशानियों के चलते अब कोई ऑपरेशन करने की हालात में नहीं थे कि ख़बर आई किसी डीएसपी को लोकल मुठभेड़ में सर में गोली लगी थी।
"डॉक्टर आरूषि, डीन की भी तबियत खराब हो गई है और गोली स्कैल्प के बाहरी हिस्से में ठीक दिमाग़ के पास अटकी है। जरा सी भी गलती और इस पेशेंट की जान चली जाएगी। यह प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारी है।" प्रिंसिपल ख़ुद आए थे।
आरूषि बेहद थकी थी पर कोई ऑप्शन भी तो नहीं था।
"सर, आपकी मौजूदगी मुझे संबल देगी।"आरूषि तैयार थी।
" किंग जार्ज हॉस्पिटल से एक अनुभवी सर्जन आ रहे हैं। वे भी मौजूद रहेंगे।"
आरूषि ऑपरेशन में जुट गई। सुबह के 7 बज चुके थे। वे सर्जन जब तक पहुंचे तब तक आरूषि बेहद सफलता से गोली निकाल चुकी थी।
"वेल डन डॉक्टर!! आज तक मेरी प्रैक्टिस में आप पहली है जिसने इतनी सफलता से पढ़ते हुए यह कारनामा किया है।" उन्होंने पहुंचते ही ट्रीटमेंट चार्ट पढ़ते हुए कहा।
"आप आराम कर सकती हैं अब मैं सब संभाल लूंगा।"ब्रीफिंग के बाद उन्होंने कहा।
आरूषि निढ़ाल होकर डॉक्टर्स रूम में सो गई। अब तक ख़बर सभी न्यूज चैनल्स में फैल चुकी थी। अनुपम, सौम्या और मम्मीजी को भी पता चल गया था।
"आरूषि, कैसी हो बेटा ?" 12 बजे थे और मम्मीजी लखनऊ पहुंचकर आरूषि को जगा रही थी। वे आरूषि को सौम्या के मम्मी पापा के साथ उनके घर ले आई थी। प्रिंसिपल, सुपरिटेंडेंट और बाकी सर्जेंस ने उसको ले जाने की इजाजत दे दी थी। बस किसी इमरजेंसी में उससे कॉन्टैक्ट करने की इजाजत मां से ले ली गई थी। घर पहुंचते ही आरूषि फिर मम्मीजी से चिपककर सो गई थी। मम्मी जानती थी कि आरूषि के लिए इतने स्ट्रेस और थकान के बाद उनका साथ कितना ज़रूरी था !!
सीएम साहब का दौरा वहां होने के लिए फोन आने पर प्रिन्सिपल ने शाम को आने का अनुरोध किया। जिसे मान लिया गया। सुपरिटेंडेंट ने आरुषि को भी आने के लिए फ़ोन किया और शाम पांच बजे बुलाया।
आरुषि भी फ्रेश हो गई थी। मम्मीजी के साथ ने उसे नया संबल दे दिया था। सीएम साहब सब जानकारी पाकर और आरुषि से मिलकर बेहद खुश हुए। उन्हें बाकी जानकारी मिली तो उन्होंने उनकी मम्मीजी को सीएम हाउस मिलने बुलाने के निर्देश दिए।
रात तक यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर फैल गई थी। डीएसपी भी प्रतिपक्ष के नेता के निकट संबंधी थे। वे भी आरुषि से व्यक्तिगत रूप से मिले और उसे धन्यवाद दिया। मम्मीजी को सुबह मुंबई निकलना था तो वे समय लेकर रात को ही सीएम हाऊस चली गई। सीएम साहब ने उनके दोनों बच्चों के योगदान की प्रशंसा की और उत्तरप्रदेश से उनके संबंध को जानकर और प्रसन्न हुए। उन्होंने उनसे 1दिन रुकने और स्टेट गेस्ट के रूप में ठहराने की पेशकश की परंतु उन्होंने विनम्रता से प्रस्ताव नकार दिया। पर 1 दिन रुकने की बात मान ली।
दूसरे दिन अनुपम भी सीएम के बुलावे पर आ पहुंचा था। सौम्या की परीक्षा थी एडमिशन की तो वो भी छुट्टी लेकर आ गई। मां अपने सारे परिवार को वहां देखकर खुश थी। उन्हें अपने बच्चों की सफलता ने आल्हादित कर दिया था। अनुपम को लखनऊ में ही पोस्ट कर दिया गया। अब उसे गृह मंत्रालय में अवर सचिव बनाया गया था। उसे वहीं बंगला अलॉट किया गया। सीएम साहब ने मम्मीजी को उनका उपहार और दोनों की मेहनत और लगन का फल इस तरह दे दिया था।
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26-Dec-2021 03:55 PM
इंट्रेस्टिंग कहानी, आपकी वाकई बहुत शानदार है, कृपया हमारी स्टोरी हमसफर भी पढ़े, उम्मीद है आपको पसंद आएगी।
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Ajay
26-Dec-2021 06:53 PM
कृपया यहां कमेंट सेक्शन में लिंक पोस्ट कर दे। मैं ज्यादा इंटरनेट प्रवीण नहीं हूं। पर पढ़ने का बेहद शौकीन हूं।🙏🏻🙏🏻
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राधिका माधव
25-Dec-2021 11:44 PM
बेहतरीन, बेहतरीन, बेहतरीन...! कहानी चल रही है। आगे क्या होगा जानने की उत्सुकता है। लेकिन वो कौन था जिसका इलाज आरुषि ने किया..??
Reply
Ajay
26-Dec-2021 03:51 AM
कल सुबह के भाग में स्पष्ट हो जाएगा। इतनी जल्दी सराहने के लिए आपका बहुत आभार।
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